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Monday, 13 June 2016

गावं की लड़की 5

अचानक ऐसे सवाल को सुन कर सावित्री की आँखे फटी की फटी रह गई वह मानो अगले पल गिरकर मर जाएगी उसे ऐसा लग रहा था. उसका गले मे मानो लकवा मार दिया होदिमाग़ की सारी नसे सूख गयी हो. सावित्री के रोवे रोवे को कंपा देने वाले इस सवाल ने सावित्री को इस कदर झकझोर दिया कि मानो उसके आँखो के सामने कुछ दीखाई ही नही दे रहा था. आख़िर वह कुछ बोल ना सकी और एक पत्थेर की तरह खड़ी रह गई. दुबारा भोला पंडित ने वही सवाल दुहरेया "महीना कब बैठी थी" सावित्री के सिर से पाँव तक पसीना छूट गया. उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि ये क्या हो रहा है और वह क्या करे लेकिन दूसरी बार पूछने पर वह काफ़ी दबाव मे आ गयी और सूखे गले से काफ़ी धीमी आवाज़ ही निकल पाई "दस दिन प..." और आवाज़ दब्ति चली गयी कि बाद के शब्द सुनाई ही नही पड़े. फिर भोला पंडित ने कुछ और कड़े आवाज़ मे कुछ धमकी भरे लहजे मे आदेश दिया "जाओ पेशाब कर के आओ" इसे सुनते ही सावित्री कांप सी गयी और शौचालय के तरफ चल पड़ी. अंदर जा कर सीत्कनी बंद करने मे लगताथा जैसे उसके हाथ मे जान ही नही है. भोला पंडित का पेशाब कराने का मतलब सावित्री समझ रही थी लेकिन डर के मारे उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो अब क्या करे . शौचालय के अंदर सावित्री के हाथ जरवंद खोलने मे कांप रहे थे और किसी तरह से जरवंद खोल कर सलवार को नीचे की और फिर चड्धि को सर्काई और पेशाब करने बैठी लेकिन काफ़ी मेहनत के बाद पेशाब की धार निकलना शुरू हुई. पेशाब करने के बाद सावित्री अपने कपड़ो को सही की दुपट्टा से चुचियो को ढाकी फिर उसकी हिम्मत शौचालय से बाहर आने की नही हो रही थी और वह उसी मे चुपचाप खड़ी थी. तभी फिर डरावनी आवाज़ कानो मे बम की तरह फट पड़ा "जल्दी आओ बाहर" बाहर आने के बाद वह नज़ारे झुकाए खड़ी थी और उसका सीना धक धक ऐसे कर रहा था मानो फट कर बाहर आ जाएगा . सावित्री ने देखा की भोला पंडित चौकी पर दोनो पैर नीचे लटका कर बैठे हैं. फिर पंडित जी चौकी पर बैठे ही सावित्री को नीचे से उपर तक घूरा और फिर चौकी पर लेट गये. चौकी पर एक बिस्तर बिछा था और भोला पंडित के सिर के नीचे एक तकिया लगा था. भोला पंडित लेते लेते छत की ओर देख रहे थे और चित लेट कर दोनो पैर सीधा फैला रखा था. वे धोती और बनियान पहने थे. धोती घुटने तक थी और घुटने के नीचे का पैर सॉफ दीख रहा था जो गोरे रंग का काफ़ी मजबूत था जिसपे काफ़ी घने बाल उगे थे. सावित्री चुपचाप अपने जगह पर ऐसे खड़ी थी मानो कोई मूर्ति हो. वह अपने शरीर मे डर के मारे धक धक की आवाज़ साफ महसूस कर रही थी. यह उसके जीवन का बहुत डरावना पल था. शायद अगले पल मे क्या होगा इस बात को सोच कर काँप सी जाती. इतने पॅलो मे उसे महसूस हुआ कि उसका पैर का तलवा जो बिना चप्पल के कमरे के फर्श पर थे,पसीने से भीग गये थे. उसकी साँसे तेज़ चल रही थी. उसे लग रहा था की सांस लेने के लिए उसे काफ़ी ताक़त लगानी पड़ रही थी. ऐसा जैसे उसके फेफड़ों मे हवा जा ही नही रही हो. उसके दिल और दिमाग़ दोनो मे लकवा सा मार दिया था. तभी पंडित जी कमरे के छत के तरफ देखते हुए बोले "पैर दबा" सावित्री जो की इस दयनीय हालत मे थी और शर्म से पानी पानी हो चुकी थीठीक अपने सामने नीचे फर्श पर देख रही थीक्योंकि उसकी भोला पंडित की तरफ देखने की हिम्मत अब ख़त्म हो चुकी थीआवाज़ सुनकर फिर से कांप सी गयी और अपने नज़रो को बड़ी ताक़त से उठा कर चौकी के तरफ की और भोला पंडित को जब कनखियों से देखी कि वे धोती और बनियान मे सिर के नीचे तकिया लगाए लेते थे और अब सावित्री के तरफ ही देख रहे थे. सावित्री फिर से नज़रे नीचे गढ़ा ली. वह चौकी से कुछ ही दूरी पर ही खड़ी थी उसे लग रहा था कि उसके पैर के दोनो तलवे फर्श से ऐसे चिपक गये हो की अब छूटेंगे ही नही. भोला पंडित को अपनी तरफ देखते हुए वह फिर से घबरा गयी और डर के मारे उनके पैर दबाने के लिए आगे बढ़ी ही थी कि ऐसा महसूस हुआ जैसे उसे चक्केर आ गया हो और अगले पल गिर ना जाए. शायद काफ़ी डर और घबराहट के वजह से ही ऐसा महसूस की. ज्यों ही सावित्री ने अपना पैर फर्श पर आगे बढ़ाई तो पैर के तलवे के पसीना का गीलापन फर्श पर सॉफ दीख रहा था. अब चौकी के ठीक करीब आ गयी और खड़ी खड़ी यही सोच रही थी कि अब उनके पैर को कैसे दबाए. भोला पंडित ने सावित्री से केवल पैर दबाने के लिए बोला था और ये कुछ नही कहा कि चौकी पर बैठ कर दबाए या केवल चौकी के किनारे खड़ी होकर की दबाए. क्योंकि सावित्री यह जानती थी कि पंडित जी को यह मालूम है कि सावित्री एक छ्होटी जात की है और लक्ष्मी ने सावित्री को पहले ही यह बताया था कि दुकान मे केवल अपने काम से काम रखना कभी भी पंडित जी का कोई समान या चौकी को मत छूना क्योंकि वो एक ब्राह्मण जाती के हैं और वो छ्होटी जाती के लोगो से अपने सामानो को छूना बर्दाश्त नही करतेऔर दुकान मे रखी स्टूल पर ही बैठना और आराम करने के लिए चटाई का इस्तेमाल करना. शायद इसी बात के मन मे आने से वह चौकी से ऐसे खड़ी थी कि कहीं चौकी से सॅट ना जाए. भोला पंडित ने यह देखते ही की वह चौकी से सटना नही चाहती है उन्हे याद आया कि सावित्री एक छोटे जाती की है और अगले ही पल उठकर बैठे और बोले "जा चटाई ला" सावित्री का डर बहुत सही निकला वह यह सोचते हुए कि भला चौकी को उसने छूआ नही. दुकान वाले हिस्से मे जहाँ वो आराम करने के लिए चटाई बिछाई थीलेने चली गयी. इधेर भोला पंडित चौकी पर फिर से पैर लटका कर बैठ गयेसावित्री ज्यों ही चटाई ले कर आई उन्होने उसे चौकी के बगल मे नीचे बिछाने के लिए उंगली से इशारा किया. सावित्री की डरी हुई आँखे इशारा देखते ही समझ गयी कि कहाँ बिछाना है और बिछा कर एक तरफ खड़ी हो गयी और अपने दुपट्टे को ठीक करने लगी,उसका दुपट्टा पहले से ही काफ़ी ठीक था और उसके दोनो चूचियो को अच्छी तरह से ढके था फिर भी अपने संतुष्टि के लिए उसके हाथ दुपट्टे के किनारों पर चले ही जाते. भोला पंडित चौकी पर से उतर कर नीचे बिछी हुई चटाई पर लेट गये. लेकिन चौकी पर रखे तकिया को सिर के नीचे नही लगाया शायद चटाई का इस्तेमाल छ्होटी जाती के लिए ही था इस लिए ही चौकी के बिस्तर पर रखे तकिया को चटाई पर लाना मुनासिब नही समझे. भोला पंडित लेटने के बाद अपने पैरों को सीधा कर दिया जैसा की चौकी के उपर लेते थे. फिर से धोती उनके घुटनो तक के हिस्से को ढक रखा था. उनके पैर के तरफ सावित्री चुपचाप खड़ी अपने नज़रों को फर्श पर टिकाई थी. सीने का धड़कना अब और तेज हो गया था. तभी पंडित जी के आदेश की आवाज़ सावित्री के कानो मे पड़ी "अब दबा" . सावित्री को ऐसा लग रहा था कि घबराहट से उसे उल्टी हो जायगि. अब सावित्री के सामने यह चुनौती थी कि वह पंडित जी के सामने किस तरह से बैठे की पंडित जी को उसका शरीर कम से कम दीखे. जैसा की वह सलवार समीज़ पहनी और दुपट्टा से अपने उपरी हिस्से को काफ़ी ढंग से ढक रखा था. फिर उसने अपने पैर के घुटने को मोदकर बैठी और यही सोचने लगी कि अब पैर दबाना कहाँ से सुरू करे.