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Thursday 30 June 2016

चूत एक पहेली-3

दोस्तो, अब वक़्त आ गया है हमारे गेम शो का.. जो कहने को तो एक बस खेल है.. मगर उसमें कितने राज छुपे हैं.. आज सब आपके सामने आ जाएँगे ..तो खुद मजा देख लो।

चूत एक पहेली-2

हाँ। हमारे एसीपी यानि अर्जुन को आराम के लिए अलग कमरा दिया गया।
मुनिया मौका देख कर अर्जुन के कमरे में चली गई।

चूत एक पहेली-1

टोनी- मस्त है ये आइडिया.. तो मगर तुम तीनों में अगर पुनीत के पास बड़े कार्ड्स होंगे.. वो तो जीत जाएगा मगर तुम्हारा क्या होगा?
रॉनी- गधे के गधे रहोगे तुम.. ये गेम तुम्हारे और पुनीत के बीच है.. समझे? बस तुम दोनों के कार्ड्स ही ओपन होंगे.. बाकी सब सारे कार्ड्स गड्डी में मिला देंगे।

चाण्डाल चौकड़ी के कारनामे-3

मैंने सोचा- साला आज का दिन लगता है शायद सील तोड़ने का ही दिन है, अभी एक सील छोड़ कर आया तो दूसरी सील आ गई।

चाण्डाल चौकड़ी के कारनामे-2

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चाण्डाल चौकड़ी के कारनामे-1

कमरे में आने के बाद मैंने उसे बिस्तर पर लेटने का इशारा किया, दरवाज़ा बंद किया और कुण्डी लगा दी।
नेहा बिस्तर पर लेट चुकी थी।

दोस्त और उसकी बीवी ने लगाया ग्रुप सेक्स का चस्का-4

तभी मुझे लगा कि कामिनी ने एक बार फिर अपना योनि रस छोड़ दिया है..
ठीक उसी समय मुझे भी लगा कि मैं आने वाला हूँ, मैंने कामिनी से कहा- मेरी जान, मैं छुटने वाला हूँ, कहाँ निकालूँ?
कामिनी बोली- मेरे अंदर ही डाल दो मेरे राजा, आज मेरी चूत की दूसरी सुहागरात है।
उसे और मुझे यह शर्म ही नहीं थी कि उसका पति भी हमारी बात सुन रहा है।
मैं अपना सारा माल उसके अंदर डाल कर निढाल होकर उसके ऊपर ही लेट गया।
वो भी मुझे ऐसे भींच कर बुदबुदा रही थी- अब मुझे छोड़ कर मत जाना जानू…

दोस्त और उसकी बीवी ने लगाया ग्रुप सेक्स का चस्का-3

मैं जैसे ही नीचे झुका उसने कामिनी की पैंटी उतार कर उसकी चूत मेरे मुँह के सामने कर दी।
मैंने जीभ से उसकी चूत को चाटना शुरू कर दिया।

Tuesday 21 June 2016

mosi ko zabardasti choda

dear freinds me new on this site well main aaj apko apni story snuata hoon. mera naam samarth hai and log mujhe sam  kah kar pukartay hain. meri age  32 hai and surat -gujrat , Main rahta hoon.mera e

Pehli Chudai Ki Dastan by POOJA

Pehli Chudai Ki Dastan by Pooja
Hi, main pooja hu,meri paheli kahani meri kuwari chut aap ne padi gongi  aap ke dher sare mail mujhe mile mujhe bahut achha laga aap ne meri kahani padhi agar aap ko ye kahani pasand aye to mail zarur karna 
 main aaj aapko apni paheli chudai ki dastan sunati hu, meri english achi nahi hai, isliye mai hindi mai likh rahi hu.

Wednesday 15 June 2016

पूनम के साथ आशिकी -3

मैं हमेशा की तरह टहलने चला गया, पास ही की एक मेडिकल शॉप से मैंने कॉफ़ी फ्लेवर के कंडोम की एक डिब्बी खरीद ली.. क्योंकि हमारी रिश्ते की शुरूआत तो कॉफ़ी से हुई थी।
आप लोग सोचेंगे कंडोम क्यों.. जस्ट फॉर सेफ्टी.. ये हमारा पहली-पहली बार था न..
वैसे भी टेंशन और प्यार एक साथ नहीं हो सकते।

पूनम के साथ आशिकी -2

अब तक आपने पढ़ा..
मैंने भी उसको अपने दिल की बात बताई और कहा- तुम नहीं जानती कि मेरा क्या हाल है.. दिन-रात तुम्हारे बारे में ही सोचता रहता हूँ।
मुझे अपने आप पर कण्ट्रोल ही नहीं रहा और मैंने उसके.. होंठों.. गालों.. बालों.. यहाँ तक कि उसके मम्मों की भी तारीफ़ कर डाली।
उसे बुरा नहीं लगा।
मैंने उससे पूछा- तुम्हारे पास स्काइप एप्लीकेशन है।
उसने कहा- हाँ।
मैंने उससे कहा- तो चलो हम अभी वहाँ मिलते हैं।
वो राज़ी हो गई।

पूनम के साथ आशिकी -1

यह एक सत्य घटना है।
नमस्कार दोस्तो.. मेरा नाम अर्जुन है। मेरी उम्र 23 साल है.. मैं दिल्ली में रहता हूँ। मैं एक टेक्निकल स्कूल में कंप्यूटर सर्वर नेटवर्किंग की फैकल्टी हूँ। वहाँ और भी कई सारे टेक्निकल कोर्सेज पढ़ाए जाते हैं जैसे इलेक्ट्रिकल, डीटीपी, कंप्यूटर ब्यूटी कल्चर, ड्रेस-डिजाइनिंग, मैकेनिकल, फैशन डिजाइनिंग आदि।

गरीबी ने चूत और नौकरी दोनों दिलाई -2

मैं बंटी आपके सामने फिर से अपनी कहानी को आगे बढ़ाने के लिए हाजिर हूँ। आप सभी के मेरे पास बहुत से ईमेल आये लेकिन सभी ईमेल का जवाब देपाना किसी भी प्रकार से संभव नहीं है, फिर भी मैंने सभी ईमेल का जवाब देने का प्रयास किया है।

बॉस ने नौटंकी करके चूत चुदवाई

महिलाओं को मेरा प्यार और भाइयों को चियर्स।
मेरा नाम शिवम है.. मैं एक प्ले-बॉय हूँ.. लखनऊ शहर का निवासी हूँ और सामजिक रूप से मैं एक मार्शल-आर्ट्स कोच हूँ।

Monday 13 June 2016

Nisha Aur Main in Hindi

ENJOY FRIENDS….!!!
GOOD NIGHT …. SEXY DREAMS … TAKE CARE …. KEEP SMILING…:)))
Writer : UNKNOWN … Used As MAIN…!!!
IF YOU WANT THESE KINDS OF STORIES DAILY DO LIKE & COMMENT..
Main Aur Nisha…

गावं की लड़की 7

सावित्री के हथेलिओं को पंडित जी की जाँघ की मांसपेशियो के काफ़ी कड़े और गातीलेपन का आभास हर दबाव पर हो रहा था जैसे की कोई चट्टान के बने हों. पंडित जी किताब को दोनो हाथो मे लेकर लेटे लेटे पढ़ रहे थे और किताब उनके मुँह के ठीक सामने होने के कारण अब पंडित जी सावित्री को नही देख सकते थे. पंडित जी का मुँह अब किताब के आड़ मे पा कर सावित्री की हिम्मत हुई और वह पंडित जी के कमर वाले हिस्से के तरफ नज़र दौड़ाई तो देखा की धोती जो केवल जाँघो पर से हटी थी लेकिन कमर के

गावं की लड़की 2

सारी रात सीता को नीद नही आ रही थी वो यही सोचती कि आख़िर सावित्री को कहाँ और कैसे काम पर लगाया जाए. भोला पंडित की वो बात जिसमे उन्होने अनुभव और लक्ष्मी की बात जिसमे 'सुनना ही पड़ता है और बिना बाहर निकले कुछ सीखना मुस्किल हैमानो कान मे गूँज रहे थे और कह रहे थे कि सीता अब हिम्मत से काम लो . बेबस सीता के दुखी मन मे अचानक एक रास्ता दिखा पर कुछ मुस्किल ज़रूर थावो ये की भोला पंडित लक्ष्मी को अपने यहाँ काम पर रखना चाहता था पर लक्ष्मी अभी तैयार नहीं

हम दो लडकिया 1

मैं आज 22 की हो गयी हूँ . कुछ बरस पहले तक में बिलकुल 'फ्लैट' थी .. आगे से भी .. और पीछे से भी . पर स्कूल बस में आते जाते ; लड़कों के कन्धों की रगड़ खा खा कर मुझे पता ही नहीं चला की कब मेरे कूल्हों और छातियों पर चर्बी चढ़ गयी .. बाली उम्र में ही मेरे नितम्ब बीच से एक फांक निकाले हुए गोल तरबूज की तरह उभर गए . मेरी छाती पर भगवन के दिए दो अनमोल 'फल ' भी अब 'अमरूदों ' से बढ़कर मोती मोती 'सेबों ' जैसे हो गए थे . मैं कई बार बाथरूम में नंगी होकर अचरज से उन्हें देखा करती थी .. छू कर .. दबा कर .. मसल कर . मुझे ऐसा करते हुए अजीब सा आनंद आता .. 'वहां भी .. और नीचे भी .

चाची ने मुझे चुदवाया

मैं उन दिनों अपने चाचा के यहां आई हुई थी। मैं एम ए की छात्रा थी। चाचा बिजनेस के सिलसिले में कुछ दिनों के लिये दिल्ली गये हुए थे। चाची घर पर ट्यूशन पढाती थी। चाची का नाम सुमन था। उनकी उम्र 35वर्ष की थी। उसके पास कोलेज दो के छात्र पढने आते थे। रवि और सोनू नाम था उनका। दोनो ही 20 - 21वर्ष के थे। मुझे पहले दिन से ही वो हाय हेल्लो करने लगे थे। उन दोनों से मेरी जल्दी ही दोस्ती हो गयी थी। ऊपर का कमरा खाली था सो सुमन उन्हे वहीं पढाया करती थी।
एक

गावं की लड़की 5

अचानक ऐसे सवाल को सुन कर सावित्री की आँखे फटी की फटी रह गई वह मानो अगले पल गिरकर मर जाएगी उसे ऐसा लग रहा था. उसका गले मे मानो लकवा मार दिया होदिमाग़ की सारी नसे सूख गयी हो. सावित्री के रोवे रोवे को कंपा देने वाले इस सवाल ने सावित्री को इस कदर झकझोर दिया कि मानो उसके आँखो के सामने कुछ दीखाई ही नही दे रहा था. आख़िर वह कुछ बोल ना सकी और एक पत्थेर की तरह खड़ी रह गई. दुबारा भोला पंडित ने वही सवाल दुहरेया "महीना कब बैठी थी" सावित्री के सिर से पाँव तक पसीना छूट गया. उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि ये क्या हो रहा है और वह क्या करे लेकिन दूसरी बार पूछने पर वह काफ़ी दबाव मे आ गयी और सूखे गले से काफ़ी धीमी आवाज़ ही निकल पाई "दस दिन प..." और आवाज़ दब्ति चली गयी कि बाद के शब्द सुनाई ही नही पड़े. फिर भोला पंडित ने कुछ और कड़े आवाज़ मे कुछ धमकी भरे लहजे मे आदेश दिया "जाओ पेशाब कर के आओ" इसे सुनते ही सावित्री कांप सी गयी और शौचालय के तरफ चल पड़ी. अंदर जा कर सीत्कनी बंद करने मे लगताथा जैसे उसके हाथ मे जान ही नही है. भोला पंडित का पेशाब कराने का मतलब सावित्री समझ रही थी लेकिन डर के मारे उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो अब क्या करे . शौचालय के अंदर सावित्री के हाथ जरवंद खोलने मे कांप रहे थे और किसी तरह से जरवंद खोल कर सलवार को नीचे की और फिर चड्धि को सर्काई और पेशाब करने बैठी लेकिन काफ़ी मेहनत के बाद पेशाब की धार निकलना शुरू हुई. पेशाब करने के बाद सावित्री अपने कपड़ो को सही की दुपट्टा से चुचियो को ढाकी फिर उसकी हिम्मत शौचालय से बाहर आने की नही हो रही थी और वह उसी मे चुपचाप खड़ी थी. तभी फिर डरावनी आवाज़ कानो मे बम की तरह फट पड़ा "जल्दी आओ बाहर" बाहर आने के बाद वह नज़ारे झुकाए खड़ी थी और उसका सीना धक धक ऐसे कर रहा था मानो फट कर बाहर आ जाएगा . सावित्री ने देखा की भोला पंडित चौकी पर दोनो पैर नीचे लटका कर बैठे हैं. फिर पंडित जी चौकी पर बैठे ही सावित्री को नीचे से उपर तक घूरा और फिर चौकी पर लेट गये. चौकी पर एक बिस्तर बिछा था और भोला पंडित के सिर के नीचे एक तकिया लगा था. भोला पंडित लेते लेते छत की ओर देख रहे थे और चित लेट कर दोनो पैर सीधा फैला रखा था. वे धोती और बनियान पहने थे. धोती घुटने तक थी और घुटने के नीचे का पैर सॉफ दीख रहा था जो गोरे रंग का काफ़ी मजबूत था जिसपे काफ़ी घने बाल उगे थे. सावित्री चुपचाप अपने जगह पर ऐसे खड़ी थी मानो कोई मूर्ति हो. वह अपने शरीर मे डर के मारे धक धक की आवाज़ साफ महसूस कर रही थी. यह उसके जीवन का बहुत डरावना पल था. शायद अगले पल मे क्या होगा इस बात को सोच कर काँप सी जाती. इतने पॅलो मे उसे महसूस हुआ कि उसका पैर का तलवा जो बिना चप्पल के कमरे के फर्श पर थे,पसीने से भीग गये थे. उसकी साँसे तेज़ चल रही थी. उसे लग रहा था की सांस लेने के लिए उसे काफ़ी ताक़त लगानी पड़ रही थी. ऐसा जैसे उसके फेफड़ों मे हवा जा ही नही रही हो. उसके दिल और दिमाग़ दोनो मे लकवा सा मार दिया था. तभी पंडित जी कमरे के छत के तरफ देखते हुए बोले "पैर दबा" सावित्री जो की इस दयनीय हालत मे थी और शर्म से पानी पानी हो चुकी थीठीक अपने सामने नीचे फर्श पर देख रही थीक्योंकि उसकी भोला पंडित की तरफ देखने की हिम्मत अब ख़त्म हो चुकी थीआवाज़ सुनकर फिर से कांप सी गयी और अपने नज़रो को बड़ी ताक़त से उठा कर चौकी के तरफ की और भोला पंडित को जब कनखियों से देखी कि वे धोती और बनियान मे सिर के नीचे तकिया लगाए लेते थे और अब सावित्री के तरफ ही देख रहे थे. सावित्री फिर से नज़रे नीचे गढ़ा ली. वह चौकी से कुछ ही दूरी पर ही खड़ी थी उसे लग रहा था कि उसके पैर के दोनो तलवे फर्श से ऐसे चिपक गये हो की अब छूटेंगे ही नही. भोला पंडित को अपनी तरफ देखते हुए वह फिर से घबरा गयी और डर के मारे उनके पैर दबाने के लिए आगे बढ़ी ही थी कि ऐसा महसूस हुआ जैसे उसे चक्केर आ गया हो और अगले पल गिर ना जाए. शायद काफ़ी डर और घबराहट के वजह से ही ऐसा महसूस की. ज्यों ही सावित्री ने अपना पैर फर्श पर आगे बढ़ाई तो पैर के तलवे के पसीना का गीलापन फर्श पर सॉफ दीख रहा था. अब चौकी के ठीक करीब आ गयी और खड़ी खड़ी यही सोच रही थी कि अब उनके पैर को कैसे दबाए. भोला पंडित ने सावित्री से केवल पैर दबाने के लिए बोला था और ये कुछ नही कहा कि चौकी पर बैठ कर दबाए या केवल चौकी के किनारे खड़ी होकर की दबाए. क्योंकि सावित्री यह जानती थी कि पंडित जी को यह मालूम है कि सावित्री एक छ्होटी जात की है और लक्ष्मी ने सावित्री को पहले ही यह बताया था कि दुकान मे केवल अपने काम से काम रखना कभी भी पंडित जी का कोई समान या चौकी को मत छूना क्योंकि वो एक ब्राह्मण जाती के हैं और वो छ्होटी जाती के लोगो से अपने सामानो को छूना बर्दाश्त नही करतेऔर दुकान मे रखी स्टूल पर ही बैठना और आराम करने के लिए चटाई का इस्तेमाल करना. शायद इसी बात के मन मे आने से वह चौकी से ऐसे खड़ी थी कि कहीं चौकी से सॅट ना जाए. भोला पंडित ने यह देखते ही की वह चौकी से सटना नही चाहती है उन्हे याद आया कि सावित्री एक छोटे जाती की है और अगले ही पल उठकर बैठे और बोले "जा चटाई ला" सावित्री का डर बहुत सही निकला वह यह सोचते हुए कि भला चौकी को उसने छूआ नही. दुकान वाले हिस्से मे जहाँ वो आराम करने के लिए चटाई बिछाई थीलेने चली गयी. इधेर भोला पंडित चौकी पर फिर से पैर लटका कर बैठ गयेसावित्री ज्यों ही चटाई ले कर आई उन्होने उसे चौकी के बगल मे नीचे बिछाने के लिए उंगली से इशारा किया. सावित्री की डरी हुई आँखे इशारा देखते ही समझ गयी कि कहाँ बिछाना है और बिछा कर एक तरफ खड़ी हो गयी और अपने दुपट्टे को ठीक करने लगी,उसका दुपट्टा पहले से ही काफ़ी ठीक था और उसके दोनो चूचियो को अच्छी तरह से ढके था फिर भी अपने संतुष्टि के लिए उसके हाथ दुपट्टे के किनारों पर चले ही जाते. भोला पंडित चौकी पर से उतर कर नीचे बिछी हुई चटाई पर लेट गये. लेकिन चौकी पर रखे तकिया को सिर के नीचे नही लगाया शायद चटाई का इस्तेमाल छ्होटी जाती के लिए ही था इस लिए ही चौकी के बिस्तर पर रखे तकिया को चटाई पर लाना मुनासिब नही समझे. भोला पंडित लेटने के बाद अपने पैरों को सीधा कर दिया जैसा की चौकी के उपर लेते थे. फिर से धोती उनके घुटनो तक के हिस्से को ढक रखा था. उनके पैर के तरफ सावित्री चुपचाप खड़ी अपने नज़रों को फर्श पर टिकाई थी. सीने का धड़कना अब और तेज हो गया था. तभी पंडित जी के आदेश की आवाज़ सावित्री के कानो मे पड़ी "अब दबा" . सावित्री को ऐसा लग रहा था कि घबराहट से उसे उल्टी हो जायगि. अब सावित्री के सामने यह चुनौती थी कि वह पंडित जी के सामने किस तरह से बैठे की पंडित जी को उसका शरीर कम से कम दीखे. जैसा की वह सलवार समीज़ पहनी और दुपट्टा से अपने उपरी हिस्से को काफ़ी ढंग से ढक रखा था. फिर उसने अपने पैर के घुटने को मोदकर बैठी और यही सोचने लगी कि अब पैर दबाना कहाँ से सुरू करे.

interstion tuching story

मेरा नाम अमित है और मै २० साल का एक युवक हूँ मेरी दीदी का नाम संगीता है और उसकी उमर क़रीब २६ साल है दीदी मुझसे ६ साल बड़ी हैं हम लोग एक मिडल-कलास फमिली है और एक छोटे से फ्लैट मे मुंबई मे रहते हैं.

हमारा घर मे एक छोटा सा हाल, डिनिंग रूम दो बेडरूम और एक किचन है बाथरूम एक ही था और उसको सभी लोग इस्तेमाल करते थे. हमारे पिताजी और माँ दोनो नौकरी करते हैं दीदी मुझको अमित कह कर पुकारती हैं और मै उनको दीदी कहा कर पुकारता हूँ. शुरू शुरू मे मुझे सेक्स के बारे कुछ नही मालूम था क्योंकि मै हाई सकूल मे पढ़ता था और हमारे बिल्डिंग मे भी अच्छी मेरे उमर की कोई लड़की नही थी. इसलिए मैने